पृष्ठ:भाव-विलास.djvu/१२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
११५
नायिका वर्णन

 

बोलि उठी सुनि के तिय बोल, सुदेव कहै अति कोप करेरे।
काहू के रंग रंगे दृग रावरे, रावरे रंग रंगे दृग मेरे॥

शब्दार्थ—भौन–घर,गृह। भावतो–पति, प्रेमी। इतै–इधर। दृग–आँखें। बाल–स्त्री। बिलोकि–देखकर। कोप–क्रोध। करेरे–बहुत। काहू के–किसी के। राबरे–आपके। दृग–आँखें।

प्रौढ़ा मान
दोहा

उदासीन अति कोप रति, पति सों प्रौढ़ाधीर।
तर्जै मध्य उदास ह्वै, ताहि न करै अधीर॥

शब्दार्थ—सरल है।

भावार्थ—सरल है।

१–प्रौढ़ा धीरा
सवैया

क्रोध कियो मनभावन सों सु, छिपाइ लियो इकबेनी के बोलनि।
राख्यो हिये अति ईर्षा बाँधि, खुल्यो उन घूंघट की पट खोलनि॥
ज्यो चितई इत आली की ओर, सुगांठि छुटी भरि भौंह बिलोलनि।
लोइन कोइन ह्वै उझक्यो, सु बताय दियो कवि कोप कपोलनि॥

शब्दार्थ—अति–बहुत। हिए–हृदय में। आली–सखी। लोइन–आँखें। कोइन–आँखों के कोए। कोप–क्रोध।