भावार्थ—जिस रस के अनुसार जो भाव सर्व प्रथम हृदय में उत्पन्न होता है उसे कवि लोग उसका स्थायी भाव कहते हैं। नव रसो में नौ ही स्थायी भाव हैं और फिर उनके भी अनेक भेद हैं। इनमे जो रति स्थायी भाव है; उससे शृङ्गार रस की उत्पत्ति हुई है।
रति-लक्षण
दोहा
नेक जु प्रियजन देखि सुनि, आन भाव चित होइ।
अति कोविद पति कविन के, सुमति कहत रति सोइ॥
शब्दार्थ—नेक—थोड़ा भी। आन भाव—अन्य प्रकार का भाव। अतिकोविद—दिग्गज पंडित। पति कविन के—कवियों के सिरताज। सुमति—विद्वान। सोइ—उसे।
भावार्थ—अपने प्रियजन को देखकर अथवा उसके विषय में सुनकर जो एक तरह का भाव (अर्थात् गुदगुदी या उमंग) हृदय में उत्पन्न होता है, उसे कवि, पंडित तथा बुद्धिमान लोग रति कहते हैं।
उदाहरण पहला—(प्रियदर्शन से)
कवित्त
संग ना सहेली केली करति अकेली,
एक कोमल नवेली वर बेली जैसी हेम की।
लालच भरे से लखि लाल चलि आये सोचि,
लोचन लचाय रही रासि कुल नेम की॥