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भाव-विलास

 

हाथ सों हाथ गहें कविदेव, सुसाथ तिहारेई नाथ निहारी।
हाहा हमारी सौं साँची कहौं, वह थी छोहरी छीवरबारी॥

शब्दार्थ—मुक्तानि—मोती। छोहरी—बालिका।

मध्यमा
दोहा

जाहि जानि जिय मानिनी, कन्त करै मनुहारि।
पाइ परें कोपहि तजै, कहौ मध्यमा नारि॥

शब्दार्थ—कन्त—पति। मनुहारि—खुशामद, विनती।

भावार्थ—जिस स्त्री को रूठा हुआ (मानिनी) समझ कर, उसका पति उसकी खुशामद करे और पति के खुशामद करने पर अपना मान त्याग दे उसे मध्यमा कहते हैं।

उदाहरण
सवैया

नेह सों नीचे निहारि निहोरत, नाहीं कै नाह की ओर चितैवो।
पीठि दै मोरि मरोरि कैं डीठि, सकोरि कै सौंह सौ भौंह चदैवो॥
प्रीतम सों कविदेव रिसाइ के, पाइ लगाइ हिये सों लगैवो।
तेरौ री मोहि महासुख देत, सुधारसहू तैं रसीलौ रिसैवो॥

शब्दार्थ—नेह—प्रेम। निहोरत—खुशामद करते। मरोरिकैं डीठि—दृष्टि फेर कर। भौंह चढ़ैवो—भौहों का चढ़ाना—टेढ़ा करना। रिसाइके—क्रोधित होकर। सुधारस......रिसैवो—तेरा रूठना अमृत से भी बढ़कर अच्छा लगता है।