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१५१
अलंकार

 

उदाहरण
सवैया

कौन के होइ नहीं मैं हुलासु, सुजात सबै दुःख देखत ही दवि।
जाहि लखैं बिलखैं यह भाँति, परै मनु सौति सरोजन पै पबि॥
याही तें प्यारी तिहारी मुखद्युति, चन्दसमान बखानत हैं कबि।
आनन ओप मलीन न होति, पै छीनि कै जाति छपाकर की छबि।

शब्दार्थ—पबि—पत्थर। ओप—प्रकास, शोभा। आनन...छवि—मुख की शोभा कभी मलीन नही होती परन्तु चन्द्रमा की कलाक्षीण हो जाती है।

१४—विभावना
दोहा

हेतु प्रसिद्धि निरास करि, कहिये हेतु सुभाउ।
अलङ्कार कबिदेव कहि, सो बिभावना गाउ॥

शब्दार्थ—सरल है।

भावार्थ—जहाँ प्रसिद्ध हेतु के विनाही कार्य का वर्णन किया जाय वहाँ विभावना अलंकार होता है।

उदाहरण
सवैया

ये अँखियाँ बिनु काजर कारी, अयाँरी चितै चित्त में चपटीसी।
मीठी लगे बतियाँ मुख सीठी, यों सौतनि के उरमैं दपटीसी॥
अङ्गहू राग बिना अँग अङ्ग, झकोरें सुगन्धन की झपटी सी।
प्यारी तिहारी ये एड़ी लसै, बिन जावक पावक की लपटी सी॥