शब्दार्थ—सीठी—फीकी। एडी...... लपटीसी—एडी में बिना, महावर के लगे हुए भी वे अग्नि की लो के समान लाल लगती हैं।
१५—उत्प्रेक्षा
दोहा
और बस्तु कौ तर्ककरि, बरने निहचै और।
सो कहिये उतप्रेक्षा, अनुमानादिक दौर॥
शब्दार्थ—निहचै—निश्चय।
भावार्थ—किसी वस्तु का तर्क कर के अनुमान द्वारा किसी दूसरी वस्तु की कल्पना कर ली जाय वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
उदाहरण
कवित्त
हियौ हरै लेती पशु पक्षी बस करै लेतीं,
छिनो बिछुरे ही छिदि छिदि उठे छतियां।
सुनि सुनि मोही हिय जानति हौ कोही,
अब ओही रूप रहै अबरोही दिन रतियां॥
रह्यो न परत मौन मान को करैरी कौन,
भूल्यो भौन गौन गई लोक लाज घतियां।
मेरे मान आवति मनिन मन मोहिवे कों,
मोहनी के मंत्र हैं री मोहनी की बतियां॥
शब्दार्थ—छिद छिद उठै—छाती में बार बार पीड़ा हो उठती है। मेरे...........बतियाँ—मुझे ऐसा ज्ञात होता है मानो मोहन की बाते मोहनी मंत्र है जो मुनियो तक का मन मोह लेती हैं।