पृष्ठ:भाव-विलास.djvu/१७

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विभाव

 

उदाहरण
सवैया

चितदै चितऊं जित ओर सखी, तित नन्दकिशोर की ओर ठई।
दसहू दिस दूसरौ देखति ना, छबि मोहन की छिति माह छई॥
कवि कहा लों कछू कहिये, प्रतिमूरति हौं उनही की भई।
बृजबासिन कौ बृज जानि परै, न भयो बृजरी बृजराज मई॥

शब्दार्थ—चितदै—मन लगाकर। चितऊं—देखती हूँ। जित ओर—जिस तरफ़। तित—उधर। दसहू दिस—दसों दिशाओं में। छिति—पृथ्वी। प्रतिमूरति—प्रतिमूर्त्ति, छाया।

(ख) उद्दीपन
दोहा

गीत नृत्य उपवन गवन, आभूषन वन केलि।
उद्दीपन शृङ्गार के, बिधु, बसन्त, बन बेलि॥

शब्दार्थ—नृत्य—नाच। उपवन गवन—बगीचों का जाना। बनकेलि—बनक्रीड़ा। विधु—चन्द्रमा।

भावार्थ—गाना, नाचना, बगीचों में जाना, गहने पहनना, बनक्रीड़ा करना, चन्द्रमा, और बसन्त ये शृङ्गार के उद्दीपन हैं।

उदाहरण पहला—(गीत)
सवैया

आली अलापि बसन्त मनोरम मूरतिवन्त मनोज दिखावनि।
पंचमनाद निखादहि में सुर, मूरछना गन ग्राम सुभावनि॥