पृष्ठ:भाव-विलास.djvu/१६

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२—विभाव
दोहा

जे विशेष करि रसनि को, उपजावत हैं भाव।
भरतादिक सतकवि सबै, तिनको कहत बिभाव॥
ते विभाव द्वै भांति के, कोविद कहत बखानि।
आलम्बन कहि देव अरु, उद्दीपन उर आनि॥

शब्दार्थ—रसनिको—रसों का। उपजावत—उत्पन्न करते हैं।

भावार्थ—जो भाव रसों को उत्पन्न करते हैं उन्हें भरतादिक आचार्य विभाव कहते हैं। विभावों को कवियों ने दो तरह का कहा है। एक आलम्बन और दूसरा उद्दीपन

(क) आलम्बन
दोहा

रस उपजै आलम्बि जिहिं, सो आलम्बन होइ।
रसहि जगावै दीप ज्यों, उद्दीपन कहि सोइ॥

शब्दार्थ—उपजै—उत्पन्न हो। आलम्बि—आश्रय पाकर।

भावार्थ—जिनका आश्रय पाकर रसों की उत्पत्ति होती है, उसे आलम्बन और जो रसों को उद्दीप्त करते हैं वे उद्दीपन कहलाते हैं।