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अलंकार

 

उदाहरण
कवित्त

केवली समूढ़ लाज ढूढ़त ढिठाइ पैये,
चातुरी अगूढ़ गूढ़ मूढ़ता के खोज हैं।
सोभा सील भरत अरति निकरत सब,
मुहि चले खेल पुरि चले चित्त चोज हैं॥
हीन होति कटि तट पीन होत जघन,
सघन सोच लोचन ज्यो नाचत सरोज हैं।
जाति लरिकाई तरुनाई तन आवत सु,
बैठत मनोज देव उठत उरोज हैं॥

शब्दार्थ—हीन..कटि—कमर पतली होती है। पीन—पुष्ट। जधन—जंघाएँ। सरोज—कमल। लरिकाई—लड़कपन। तरुनाई—तारुण्य, यौवन। मनोज—कामदेव। उरोज—कुच।

२८–२९—हेतु और रसवत
दोहा

हेतु सहित जँह अरथ पद, हेतु बरनिये सोइ।
नौहू रस मैं सरसता, जहाँ सुरसवत होइ॥

शब्दार्थ—सरल है।

भावार्थ—जहाँ हेतु सहित किसी वस्तु का वर्णन किया जाय वहाँ हेतु अलंकार होता है, और जिसके कारण नवो रसो में सरसता आजाय वहाँ रसवत अलंकार होता है।