उदाहरण (पहला)
सवैया
देव यहै दिन राति कहै हरि, कैसेहूँ राधे सो बात कहैबी।
केलि के कुंज अकेली मिलै, कबहूं भरिके भुज भेटिन पैबी॥
आठहू सिद्धि नवोनिधि की निधि, है विरची विधि सान्निधि ऐबी।
मेटि बियोग समेटि हियो, भरि भेटि कबै मुखचन्द अचैबी॥
शब्दार्—कैसे हूं—किसी प्रकार। पैबी—पाँऊ, पासकूँ। सान्निधि—निकट, पास।
उदाहरण (दूसरा)
सवैया
बेली नवेली लतानि सों केली के, प्रात अन्हाइ सरोवर पावन।
पिंजर मंजर का छहराइ, रजक्षति छाइ छपाइ छपावन॥
सीतल मन्द सुगन्ध महा, बपुरे बिरही बपुरी नित पावन।
आजु को आयो समीर सखीरी, सरोज कँपाइ करेजो कँपावन॥
शब्दार्थअन्हाइ—नहाकर, स्नान करके। समीर—हवा। करेजो—कलेजा, हृदय।
३०–३१—ऊर्जस्वल और सूक्ष्म
दोहा
अहङ्कार गर्ब्बित बचन, सो ऊर्जस्वल होइ।
संज्ञा सो प्रगटे अरथ, सूछम कहिये सोइ॥
शब्दार्थ—सरल है।
भावार्थ—जहाँ गर्वयुक्त वचनों का वर्णन हो वहाँ ऊर्जस्वल और जहाँ संकेत से विषय की जानकारी हो वहाँ सूक्ष्म अलंकार होता है।