पृष्ठ:भाव-विलास.djvu/१८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१६८
भाव-विलास

 

उदाहरण (संकीर्ण)
सवैया

डोलति हैं यह कामलतासु, लचीं कुच गुच्छ दरूह उधा की।
कौल सनाल किवाल के हाथ, छिपी कटि कान्ति की भाति मुधाकी।
देव यही मन आवति है, सबिलास बधू बिधि हैं बहुधा की।
भाल गुही मुक्तालर माल, सुधाधर मैं मनौ धार सुधा की॥

शब्दार्थ—सुधाधर–चन्द्रमा।

उदाहरण (आशिष)
सवैया

भाग सुहाग भरी अनुराग सों, राधे जू मोहन कौ मुख जोवै।
भूषन भेष बनावें नये नित, सौतिन के चित बंछित खोवै॥
रोधन गोधन पुञ्ज चरौ पय, दास दुहों दधि दासी बिलोवैं।
पूरन काम ह्वै आठहू जाम, जु स्याम की सेज सदा सुख सोवैं॥

शब्दार्थ—जोवै–देखो। बिलोवैं–मन्थन करती हैं।

दोहा

अलङ्कार ये मुख्य हैं, इनके भेद अनन्त।
आन ग्रंथ के पन्थ लखि, जानि लेहु मतिमन्त॥
शुभ सत्रह सै छयालिस, चढ़त सोरही बर्ष।
कढ़ी देव मुख देवता, भावबिलास सहर्ष॥
दिल्ली पति अवरङ्ग के, आजमसाह सपूत।
सुन्यो सराह्यो ग्रन्थ यह, अष्ट जाम संयूत॥

भावार्थ—ये ३९ अलंकार मुख्य हैं। इनके अनेक भेद हैं। वे किसी बड़े ग्रन्थ से जाने जा सकते हैं। शेष सरल है।