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आंतर संचारी-भाव


शब्दार्थ—आसव—मदिरा। हरिनीदृग—हरिनी जैसे नेत्रवाली। बिरहानल—वियोग की आग। जोवै—देखती है।

६—श्रम
दोहा

अति रति अति गति ते जहाँ, उपजै अति तन खेद।
सो श्रम जामें जानिये, निरसहता अरु स्वेद॥

शब्दार्थ—खेद—दुख।

भावार्थ—अति रति अथवा किसी अन्य कार्य के अधिक करने से शरीर में जो थकावट आती है उसे श्रम कहते हैं। इसमें पसीना आदि लक्षण प्रकट होते हैं।

उदाहरण
कवित्त

खरी दुपहरी बीच तरुन तरु नगीच,
सही परै तरनि के करनि की जोति है।
तामें तजि धाम चली श्याम पै विकल बाम,
काम सरदाम बपु रूपहि बिलोति है॥
बड़े बड़े बारनि तैं हारिन के भारनि तैं,
थाकी सुकुमारि अंग स्वेद रङ्ग धोति है।
संग न सहेली सु अकेली केली कुञ्जन मैं,
बैठति, उठति, ठाढ़ी होति, चलि होति है।

शब्दार्थ—खरी दुपहरी—कड़ी धूप। नगीच—पास, निकट। तरनि—सूर्य। करनि—किरणें। विकल—व्याकुल। बारनि तैं—बालों से। हारनि के—