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भाव-विलास

  भारनि तें—हारों के बोझ से। स्वेद—पसीना। ठढ़ी होति—खड़ी होती है। चलि होति है—चल देती है।

७—आलस्य
दोहा

बहु भूषादिक भाव ते, कारजु कहौ न जाय।
सो आलस्य जहां रहै, तन अक्षमता छाय॥

शब्दार्थ—बहु—बहुत। कारजु—कार्य। अक्षमता—असमर्थता।

भावार्थ—बहुत भूषणादि के कारण शरीर असमर्थ हो जाने और अपना कार्य न कर सकने को आलस्य कहते हैं।

उदाहरण
कवित्त

ऊधौ आये ऊधौ आये, हरि कौ संदेसौ लाये,
सुनि, गोपी गोप धाये, धीर न धरत हैं।
बोरी लगि दौरीं उठीं भोरी लौं भ्रमति मति,
गनति न जनो गुरु लोगन दुरत हैं॥
ह्वै गईं बिकल बाल बालम वियोग भरी,
जोग को सुनत बात गात त्यों जरत हैं।
भारे भये भूषन सम्हारे न परत अङ्ग,
आगे को धरत पग पाछे को परत हैं॥

शब्दार्थ—संदेसौ—संदेशा, हाल, समाचार। दौरी—दौड़ी। गात—शरीर। भारे भये—भारी हो गये। सम्हारे न परत—सम्हाले नहीं जाते। पग—पैर। पाछे—पीछे।