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आंतर संचारी-भाव

 

उदाहरण
सवैया

बैठी ही सुंदरि मंदिर मैं, पति को पथ पेखि पतिब्रत पोखे।
तौ लगि आयेरी आइ कह्यो दुरि, द्वारते देवर दौरि अनोखे॥
आनन्द में गुरु की गुरताउ, गनी गुनगौरि न काहू के ओखे।
नूपुर पाइ उठे झनकाइ, सुजाइ, लगी धन धाइ झरोखे॥

शब्दार्थ—बैठी ही—बैठी थी पत्ति......... पेखि—पति के आने की बाट देखती हुई। तौलगि.......अनोखे—तब तक देवर ने द्वार पर से आकर कहा कि, 'लो। वे आगये। आनन्द में गुरु.......ओखे—मारे आनन्द के बड़े लोगों का भी कुछ ध्यान न रहा। नूपुर—बिछिया। धाइ—दौड़ कर। झरोखे—खिड़की पर।

१६—जड़ता
दोहा

हित अहितहि देखै जहाँ, अचल चेष्टा होइ।
जानि बूझि कारज थके, जड़ता बरनै सोइ॥

शब्दार्थ—अचल—अस्थिर।

भावार्थ—हित अथवा अहित को देख कर, कुछ देर के लिए कार्य को भूल जड़वत हो जाने को जड़ता कहते हैं।

उदाहरण
सवैया

कालिंदी के तट काल्हि भटू, कहूं ह्वै गईं दोउन भेंट भली सी।
ठौर ही ठाड़े चितौत इतौतन, नैकऊ एक टकी टहली सी॥