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पृष्ठ:भाव-विलास.djvu/७०

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भाव-विलास

 

३४—छल
दोहा

अपमानादिक करन कों, कीजै क्रिया छिपाव।
वक्र उक्ति अन्तर कपट, सो बरनै छल भाव॥

शब्दार्थ—छिपाव—छिपाने की क्रिया।

भावार्थ—अपने अपमानादि को चतुरतापूर्वक छिपाकर, हृदय में कपट रखते हुए, वक्रोक्तियां कहना छल कहलाता है।

उदाहरण
सवैया

स्याम सयाने कहावत हैं कहौ, आजु को काहि सयानु है दीनो।
देव कहै दुरि टेर कुटीर मै, आपनो बैर बधू उहि लीनो।
चूमि गई मुँह औचक ही, पटु लै गई पै इन वाहि न चीन्हो॥
छैल भले छिन ही मैं छले, दिन ही मैं छबीली भलोछलकीन्हो॥

शब्दार्थ—सयाने—चतुर। दुरि—छिपकर। औचक–अचानक, यकायक। पटु—वस्त्र। चीन्हो—पहचाना। छबीली—सुन्दर।

छप्पय

सङ्का सूया भय गलानि, धृति सुमृति नीद मति।
चिन्ता, विसमय, व्याधि, हर्ष, उत्सुकता जड़ गति॥