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रस


शब्दार्थ—रसकेलि मैं—क्रीड़ा के समय। परजङ्क—पलंग। निसंक—निडर। अंक—गोदी। महासुखसानी—बड़े आनन्द से। दुहूँ—दोनों ने। दुरिके—छिपकर।

उदाहरण दूसरा—(प्रकाश संयोग)
कवित्त

सोधे की सुबास आस-पास भरिभवन रह्यौ,
भरन उसांस बास बासन बसात है।
कंकन झनित अगनित रब किंकनी के,
नूपुर रनित मिले मनित सुहात है॥
कुण्डल हिलत मुखमण्डल झलमलात,
हिलत दुकूल भुजमूल भहरात है।
करत बिहार 'कविदेव' बार बार बार,
छूटि छूटि जात हार टूटि टूटि जात है॥

शब्दार्थ—सोंधे—सुगंधित द्रव्य विशेष। कंकन झनित—कंकनो की आवाज़ होती है। रब—शोर। किकनी—करधनी, मेखला। नूपुर—बिछिया। मनित—मणि। दुकूल—वस्त्र। बार—अनेक बार, बारम्बार। बार—बाल। हार—गले का आभूषण।