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हाव
४—विभ्रम
दोहा
उलटे जहँ भूषन वचन, वेष हँसै जन जाहि।
भाग रूप अनुरागमद, विभ्रम वरनै ताहि॥
शब्दार्थ—सरल है।
भावार्थ—आतुरता वश भूषण तथा पहनावे का स्थानान्तर पर धारण करना विभ्रम कहलाता है।
उदाहरण
सवैया
स्याम सों केलि करी सिगरी निसि, सोत तें प्रात उठी थहराइकैं।
आपने चीर के धोखे बधू, पहिरथौ पटुपीत भटू भहराइकैं।
बाँधि लई कटि सों बनमाल, न किंकिनि बाल लई ठहराइकैं।
राधिका की रस रंग की दीपति, सँग की हेरि हँसी हहराइकै॥
शब्दार्थ—सिगरीनिसि—सारी रात। सोत... थहराइकै—सवेरे हड़बड़ाकर उठी। आपने.....धोखे—अपने वस्र के बदले। पटुपीत—पीताम्बर (श्रीकृष्ण का)। बाँधि बनमाल—बनमाला कमर से बाँध ली। संग की.....हहराइ कैं—साथ की सहेलियाँ यह देख ठठाकर हँस पड़ी।
५—किलकिंचित
दोहा
किलकिंचित मैं चपलता, नहिं कारज निरधार।
सम, दम, भय, अभिलाष, रुख, सुमित गर्व्व इकबार॥