शब्दार्थ—सरल है।
भावार्थ—एक बार ही भय, हास, रस, सम, दम, अभिलाष, मान, गर्व आदि के उत्पन्न होने को किलकिचित हाव कहते हैं।
उदाहरण
सवैया
पाइँ परै पलिका पै परी, जिय सकति सोतिन होति न सौहीं।
ऐंचि कसी फुँफुदी की फुंदी, भुज दाबी दुहूँ छतियाँ हुलसौंहीं॥
काँपि कपोलनि चाँपि हथेरिन, झाँपि रही मुख डीठि लसौंहीं।
त्यो सकुचोंहीं, उचोहीं, रुचोहीं, ससोहीं, हँसोहीं, रिसोहीं रसोहीं।
शब्दार्थ—जिय संकति—हृदय में डरती है। डीठि—दृष्टि। ऐचि कसी—खींचकर कस ली। सकुचोंहीं—लज्जायुक्त। उचोंहीं—ऊँची। (कुछ क्रोधयुक्त)। हँसोहीं—हास्य युक्त। रिसोहीं—क्रोध युक्त। रसोहीं—प्रसन्नतायुक्त।
६—मोट्टाइत
दोहा
सौति त्रास कुल लाज तें, कपट प्रेम मन होइ।
सुमुख होइ चित विमुख हू, कहौ मोटायितु सोइ॥
शब्दार्थ—सरल है।
भावार्थ—सौत के भय अथवा कुल की लज्जावश अपने हार्दिक अनुराग को प्रकट न कर सकना मोट्टाइत कहलाता है।
उदाहरण
सवैया
राधिका रूठी कछू दिन तें, कविदेव बधू न सुने कछू बोले।
नैकु चितौति नहीं चितु दै, रस हाल किये हूँ हियेहू न खोले॥