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भाव-विलास


हरि जू हँसि रंग मैं अंग छुयो, तिय संग सखीनहू कौ तजि कैं।
उठि धाई भटू भय के मिसि भामती, भीतरे भौन गई भजि कै।

शब्दार्थ—वृषभान की जाई—राधा। आई......सजिकैं—सब शृंगार करके आयी।

उदाहरण दूसरा (लाज)
सवैया

भेट भई हरि भावते सो इक, ऐसे मैं आली कह्यो बिहँसाइ कै।
कीजे लला रस केली अकेली ए, केली के भौन नवेली को पाइ कै॥
भौंहें भ्रमाइ कछू इतराइ, कछूक रिसाइ, कछू मुसक्याइ कै।
खैचि खरी दई दौरि सखी के उरोजनि बीच सरोज फिराइ कैं॥

शब्दार्थ—भावते सों—प्रीतम से, प्यारे से। आली—सखी। बिहंसाइकै—हँसकर। केली के भौन—क्रीड़ागृह। नवेली—सुंदरी। कछूक......मुसक्याइ कैं—कुछ क्रोधित होकर और कुछ मुस्कराकर।

वियोग शृंगार
दोहा

सुहृद श्रवन दरसन परस, जहां परस्परनाहिं।
सो वियोग शृंगार जहँ, मिलन आस मनमांहि॥
कहुँ पूरब अनुराग अरु, मान प्रवास बखान।
करुनातम इह भांति करि, वियोग चौविधि जान॥

शब्दार्थ—सरल है।

भावार्थ—जहाँ अपने प्यारे से परस्पर दर्शन अथवा मिलन न हो और हर समय मिलने की आशा लगी रहे वहाँ वियोग शृंगार होता है।