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वियोग शृंगार

यह वियोग चार तरह का होता है। १—पूर्वानुराग २—मान ३—प्रवास ४—करुणात्मक।

(क) पूर्वानुराग—(दर्शन)
दोहा

दंपतीन के देखि सुनि, बढ़े परस्पर प्रेम।
सो पूरब अनुराग अँह, मन मिलिवे को नेम॥

शब्दार्थ—सरल है।

भावाथ—एक दूसरे को देख अथवा सुनकर दोनों के मन में प्रेम की वृद्धि होकर, जो मिलने की अभिलाषा उत्पन्न होती है, उसे पूर्वानुराग कहते हैं।

उदाहरण
सवैया

देवजू दोऊ मिले पहिले दुति, देखत ही तें लगे द्दग गाढ़े।
आगे ही तें गुन रूप सुने, तबही तें हिये अभिलाषहि बाढ़े॥
ता दिन तें इत राधे उतै, हरि आधे भये जू वियोग के बाढ़े।
आपने आपने ऊँचे अटा चढ़ि, द्वारनि दोऊ निहारत ठाढ़े॥

शब्दार्थ—दुति—शोभा। लगे गाढ़े—भलीभांति आँखें लग गयी। आगे हीते—पहले ही से। इत—इधर। उतै—उधर। आधे......बाढ़े-वियोग दुःख के कारण आधे रह गये। द्वारनि—दरवाज़ो पर। निहारत ठाढ़े खड़ें देखते हैं।