भावार्थ—अभिलाष, चिन्ता, स्मरण, गुणकथन, उद्वेग, प्रलाप, उन्माद व्याधि, जड़ता और मरण ये पूर्वानुराग की दस अवस्थाएँ होती है। मरण का वर्णन कवि लोग पहले तो करते ही नहीं और यदि करते हैं तो इस प्रकार जिससे उसकी सरसता नष्ट न हो। चिन्ता, जड़ता, व्याधि, स्मरण, और उन्माद का वर्णन संचारी भावों में हो चुका है।
१—अभिलाष
दोहा
प्रीतम जन के मिलन की, इच्छा मन में होय।
आकुलता सङ्कल्प बहु, कहु अभिलाष जुसोय॥
शब्दार्थ—आकुलता—घबड़ाहट।
भावार्थ—प्रेमी और प्रेमिका के परस्पर मिलने की उत्सुकता को अभिलाष कहते हैं।
उदाहरण
सवैया
पहिले सतराइ रिसाइ सखी, जदुराइ पै पाइ गहाइये तौ।
फिरि भेंटि भटू भरि अंक निसङ्क, बड़े खन लों उर लाइयेतौ॥
अपनो दुख औरनि कौं उपहासु, सबै कविदेव बताइयेतौ।
घनश्यामहिं नैकहु एक घरी कौ, इहाँ लगि जोकरि पाइयेतौ॥
शब्दार्थ—सतराइ—ऐंठकर। रिसाइ—क्रोधित होकर। पाइ गहाइये—पैर पकड़वावें। बड़े खनलो उर लाइये—बहुत देर तक छाती से लगाये रहे। अपनो...बताइयेतौ—वियोगावस्था में जो दुःख पाया है वह और दूसरे जो हँसी उड़ाते रहे हैं वह सब उन्हें सुनावें घनश्यागहि....तौ—यदि घनश्याम को एक घड़ी के लिए भी पा जाँय।