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वियोग शृंगार

 

३—लघु मानमोचन
उदाहरण
सवैया

बैठें हुते रँगरावटी मैं, जिनके अनुराग रँगी बृज भून्यो।
किंकिनि काहू कहूँ झनकाइ, सुझाकन काहू झरोखे है झूम्यो॥
देव परत्रिय देखत देखि के, राधिका कौ मनु मान सौ घूम्यो।
बातें बनाइ मनाइ के लाल, हँसाइ के बाल हरे मुख चूम्यो॥

शब्दार्थ—बैठें हुते बैठें थे। अनुराग—प्रेम। किंकिनि—करधनी। परत्रिय—परस्त्री। बातें बनाइ—बातें बनाकर।

मानमोचन

साम दाम अरु भेद करि, प्रनति उपेछा भाइ।
श्ररु प्रसंग बिभ्रंस ये, मोचन मान उपाइ॥
साम क्षमापन को कहै, इष्ट दान को दान।
भेद सखी संमत मिलै, प्रनति नम्रता जान॥
वचन अन्यथा अर्थ जहँ, सुनुपेक्षा की रीति।
सो प्रसंग बिभ्रंस जहँ, अकस्मात सुख भीति॥

भावार्थ—साम, दाम, भेद, प्रनति, उपेक्षा, प्रसंग, और बिभ्रंस ये मान को दूर करने के उपाय हैं। क्षमा करना साम, इच्छित वस्तु प्रदान करना दाम, नम्रतापूर्वक व्यवहार प्रनति, सखी द्वारा अभिप्राय सिद्ध करना भेद, कहे हुए वचनों को ध्यान में लाना उपेक्षा, अकस्मात भयभीत कर सुख देना बिभ्रंस कहलाता है।