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पृष्ठ:भाषा-भूषण.djvu/३३

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( ३ ) [ नव विधि नायिका ] प्रोषितपतिका बिरहिनी, प्रति रिस पति से होइ। पुनि पीछे पछिताइ मन कलहंतरिता सेाइ ॥ १६ ॥ पति प्रावै कहुँ रैनि बसि प्रात खंडिता-गेह । जाति मिलन अभिसारिका सजि सिँगार सब देह ॥ १७ ॥ पिय सहेट पायौ नहीं चिंता मन में प्रानि । सोच करै संताप से उत्का* ताहि बखानि ॥ १८ ॥ बिनु पाये संकेत पिय विप्रलब्ध तन ताप । बासकसजा तन सजे पिय-मावन जिय थाप ॥ १६ ॥ जाके पति बाधीन कहि स्वाधिनपतिका ताहि। भोर सुनै पिय को गमन प्रषस्थतपतिका प्राहि ॥ २०॥ [गर्विता, अन्यसंभोगदुःखिता] रूप प्रेम-अभिमान ते दुविध गर्षिता जानि । अन्यसँभाग जु दुःखिता पनत मिल न पिय मानि ॥ २१ ॥ [धीरादि भेद ] गोपि कोप धीरा कर प्रगट अधीरा कोप । लच्छन धीराधीर को काप प्रगट अरु गोप ॥ २२ '

  • पाठा० -उस्कंठिता।

पाठा० -रचे सकल विध सेज को वापकसज्जा पात + ग्रिपर्सन-संपादित लालचंद्रिका में यह दोहा भनि जाको पिय प्रावै मिलन अपनी जिय के लक्षण कविजन कहत हैं भागतपनि .. होइ। पाठा०-रूप प्रम श्रौ गुना का साइ॥ . 11