पृष्ठ:भाषा-भूषण.djvu/३४

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. - [त्रिविध मान लक्षण ] सहज हांसी खेल ते, विनय बचन सुनि कान । पांइ परे पिय के मिट, लघु, मध्यम, गुरु मान ॥ २३ ॥ [पाठ साविक अनुभाव ] स्तंभ, कंप, स्वरभंग कहि, विचरन, आँसू, स्वेद । बहुरि प्रलय, रोमांच पुनि पाठौ सात्विक भेद ॥ २४॥ [ दस हाव] हाई संजोग सिंगार में दंपति के तन पाइ। चेष्टा जो बहु भांति की ते कहिये दस हाइ ॥ २५ ॥ पिय पारी रति सुख करें लोला हाव सेो जानि । बोलि सके नहि लाज ते विकृतसा हाव बखानि ॥२६॥ चितवनि बालनि चलान में रस की रीति बिलास। माहत अंग अँग भूषननि ललित से हाव प्रकास ॥ २७ ॥ विच्छिति काह बेर में भूषन अलप सुहाइ । रस से भूषन भूलि के पहिरे विभ्रम हाइ ॥ २८ ॥ क्रोध हर्ष अभिलाष भय किलकिंचित में होइ। प्रगट करे दुख सुख-समै हाप कुट्टमित सेाइ ॥ ३६ ।। प्रगट कर रिस पीय में बात न भावति कान । प्राये प्रादरु ना करे धरि बिब्बाक गुमान ॥ ३० ॥

पाठा० विहित (विहृत )। दोनों ही के लक्षण लज्जा से अपनी चि

वृत्ति का न कमा ' है। 5