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पृष्ठ:भाषा-भूषण.djvu/४०

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( १० ) सापन्हत गुन एक के औरहिं पर ठहराइ । सुधा भसौ यह बदन तुम चंद कहैं बौराइ ॥ ७२ ॥ अतिसयोक्ति भेदक घहै जो अति भेद दिखात* | पोरै हँसिबौ देखिबौ और याकी बात ॥ ७३ ॥ संबंधातिसयोक्ति जहँ देत अजोगहि जोग । या पुर के मंदिर कहैं ससि लौं ऊँचे लोग ॥ ७ ॥ प्रतिसयोक्ति दूजी वहै जोग प्रजोग बग्वान । तो कर प्रागे कलपतरु क्यों पावै सनमान ॥ ७५ ॥ अतिसयोक्ति अक्रम जबै कारज कारन संग । तो सर लागत सायहीं धनुषहि अरु परि-ग्रंग ॥ ७६ ॥ चपलात्युक्ति जु हेतु से होत शीघ्र जो काजु । कंकनहीं पीय गधन सुनि प्राजु ॥ ७७॥ प्रत्यतातिसयोक्ति से पुरबापर क्रम नाहिं। बान न पहुँचैं अंग लौ प्ररि पहिलै गिरि जाहिं ॥ ८ ॥ [ तुझ्ययोगिता] तुल्ययोगिता तीनि ए त्तच्छन क्रम ते जानि । एक शब्द में हित अहित, बहु में एक बानि ॥ ७९ ॥ बहु से समता गुननि करि इहि विधि भिन्न प्रकार । गुननिधि नीकै देत तु तिय को अरि को हार ॥ ८०॥

  • पाठा० सबै यहि बिधि घरनत जात ।

पाठा० के होत नामहीं काजु । भई मुंदरी