पृष्ठ:भाषा-भूषण.djvu/५४

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( २४ ) [अनुगुण अलंकार ] अनुगुन संगति ते मबै पूरब गुन सरसाइ । मुक्तमाल हिय-हास ते अधिक सेत कै जाइ ॥ १७४ ॥ [ मीलित अलंकार ] मीलित से सादृश्य तें भेद जबै न लखाइ । अरुन बरन नियचरन पर जाधक त्तख्यो न जाइ ॥ १७ ॥ [ सामान्य अलंकार ] सामान्य जु सादृश्य तें जानि पर न बिसेष । नाहि फरक श्रुति कमल अरुतिय-लोचन अनिमेष ॥ १७६ ॥ [ उन्मीलित अलंकार ] उन्मीलित सादृश्य तं भेद फुरै तब मानि । कीरति आगे तुहिनगिरि छुए परत पहिचानि ॥ १७७ ॥ [विशेषक अलंकार ] यह बिसे पक-बिसेप पुनि फुरै जु समता मांझ । तियमुख अरु पंकज लख ससि दरसन तं सांझ ॥ १७८ ॥ [ गूढ़ोत्तर अलंकार ] गूढ़ोत्तर कछु भाव ते उत्तर दीन्ही होत । उत बेतस तरु में पथिक उतरन तायक सेोत ॥ १७६ ॥ [चित्र अलंकार] चित्र प्रश्न उत्तर दुहू एक बचन में सोइ । मुग्धा तिय की केलि रुवि भौन कोन में होइ ॥१८० ॥