( ३२ ) लजा तथा भय से पति समागम की इच्छा न करनेवाली को नवोढ़ा तथा पति पर कुछ विश्वास और अनुगग रखनेवाली को विश्रब्ध नवोढ़ा कहते हैं । यह अंतिम भेद इस ग्रंथ में नहीं पाया है। अवस्था के कारण जिस नायिका में लज्जा और कामवासना समान हो जाय तब वह मध्या कहलाती है। कामकला में पूर्ण रूप से कुशल स्त्री प्रौढ़ा या प्रगल्भा कहलाती है। परकीया केवल प्रौदा ही मानी जाती है और उसके लिए प्रथम दो भेद बागू नहीं हैं। १३-१५-व्यापार-भेद के कारण परकीया के छ भेद किए गए हैं। विदग्धा-चतुरा को कहते हैं और यह क्रिया-चातुर्य तथा वचन चातुर्य से दो प्रकार की होती हैं। लक्षिना-अपने प्रेम या रति को छिपाने में जो न सफल हो सकी। गुप्ता-इसे सुरित-संगोपना भी कहते हैं । भूत, भविष्य तथा वर्तमान की कामकेलि को छिपाने के कारण यह तीन प्रकार की हो गई । कुलटा का काम-क्रीड़ा मन ही नहीं भरता। मदिता -कामवासना पूरी करने का प्राया देखकर प्रसन्न है। अवसर सहेट-प्रेमी से मिलने का गुप्त स्थान, संकेत स्थान । अनुसयना ( अनुशयाना) तीन प्रकार की होती है :- -संकेत-विघट्टनः-वर्तमान संकेतस्थान के नष्ट होने से दुखित । भावि संकेत-नष्टा-भावी संकेतस्थान के नष्ट होने न होने की संभावना से दुखित । ३-रमगा-गमना---संकेतस्थान में जा न सकने से प्रिय के श्राने का अनुमान कर दुखित । २
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