पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१०७

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भाषा-विज्ञान आंध्र, कर्णाटक, केरल, तामिलनाड और आधे सिंहल में सभ्य द्राविड़ भाषाएँ बोली जाती हैं, भारत के शेष प्रांतों में आर्य भाषाओं का व्यवहार होता है; आंध्र, उड़ीसा, बिहार, चेदि-कोशल, राजस्थान और महाराष्ट्र के सीमांत पर वन्य प्रदेशों में और सिंध की सीमा के पार कलात में भी कुछ अपरिष्कृत द्राविड बोलियाँ पाई जाती हैं। इन प्रधान भाषाओं और बोलियों के अतिरिक्त कुछ अप्रधान बोलियाँ भी हिमालय और विध्य-मेखला के पड़ोस में बोली जाती हैं। आस्ट्रिक परिवार की मुख्य भाषा-शाखा मुंडा ही भारत में है और वह भी मुख्यतः झाड़खंड में । तिब्बत-बर्मी भाषाएँ केवल हिमालय के ऊपरी भाग में पाई जाती हैं। कुछ ऐसी भाषाएँ भी ब्रह्मा देश में पाई जाती हैं जिनका किसी परिवार में निश्चित रूप से वर्गीकरण नहीं किया जा सकता है। इन सबका सामान्य वर्गीकरण इस प्रकार किया जाता है- १-यास्ट्रिक परिवार - (क) इंडोनेशियन (मलयद्वीपी अथवा मलायुद्वीपी)। (ख) आस्ट्रो-एशियाटिक-(१) मोन ख्मेर । (२) मुंडा ( कोल अथवा शाचर ) २--एकाक्षर (अथवा चीनी) परिवार- (क) श्यामी चीनी, (ख) तिब्बती-बर्मी। ३--द्राविड़ परिवार। ४-आर्य परिवार (अथवा भारत-ईरानी भाषाएँ) (क) ईरानी शाखा, (ख) दरद शाखा, (ग) भारतीय आर्य शाखा । ५-विविध अर्थात् अनिश्चित समुदाय ।