पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/११८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भाषाओं का वर्गीकरण बोलियाँ हैं । ये दोनों उपवर्ग शुद्ध तिब्वती हैं। इनके बोलनेवाले अर्वाचीन काल में ही तिब्बत से भारत में आए हैं अत: भाषा में भी उनका संबंध स्पष्ट देख पड़ता है। किंतु हिमालय में कुछ ऐसी भोटांशक बोलियाँ भी हैं जिनके बोलनेवाले जानते भी नहीं कि उनका अथवा उनकी बोलियों का कोई संबंध तिब्बत से है । आधुनिक भाषा-वैज्ञानकों ने यह खोज निकाला है कि उनकी बोलियों का मूल वास्तव में तिब्बती भाषा का प्राचीनतम रूप है। अभी तिब्बती भाषा का भी कोई परिपाक नहीं हो पाया था-उसका कोई रूप स्थिर नहीं हो पाया था तभी कुछ लोग भारत की ओर बढ़ आए थे, उन्हीं की बोलियाँ ये भोटांश-हिमालयी वोलियाँ हैं । उस काल में मुंडा अथवा शाबर भाषाओं का यहाँ प्राधान्य था, इसी से इन हिमालयी बोलियों में ऐसे स्पष्ट अतिब्बत- वर्मी लक्षण पाए जाते हैं कि साधारण व्यक्ति उन्हें तिब्बत-वर्मी मानने में भी संदेह कर सकता है। इनके पड़ोस में आज भी कुछ मुंडा वोलियाँ पाई जाती हैं। ऐसी हिमालयी वोलियों के दो वर्ग किए जाते हैं-एक सर्वनामा- ख्याती और दूसरा असर्वनामाख्याती ( Non-Pronominalised)। सर्वनामाख्याती (वर्ग की ) भाषा की क्रिया (आख्यात) में ही कर्ता और कर्म का अंतर्भात हो जाता है अर्थात् कर्ता, और कथित तथा अकथित दोनों प्रकार के कर्मकारक के पुरुषवाचक सर्वनामों को आख्यात (अर्थात् धातु के रूप ) में ही प्रत्यय के समान जोड़ देते हैं । जैसे हिमालयी बोली लिबू में हितूङ्गका अर्थ होता है 'मैं उसे मारता हूँ। यह बोलो सानामाख्याती है। हिपू ( = मारना) +तू ( उसे) +ङ्ग (में) से हिनङ्ग एक 'पाख्यात्त' की रचना हुई है। जिन बोलियों की क्रियाओं में सर्वनाम नहीं जोड़ा जाता वे असर्वनामाख्याती कहलाती हैं । इन भारी-भरकम परिभाषाओं से बचने के लिये एक विद्वान् ने पहले सर्वनामाख्याती वर्ग को किरात-कनावरादि वर्ग और दूसरे को नेवारादि वर्ग नाम दिया है । जाति और बोली के नाम पर बनने के कारण ये