पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/११९

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! ९४ भाषा-विज्ञान पिछले शब्द अधिक स्पष्ट और सार्थक हैं। तो हमें पहले नामों को विद्वन्मंडल में गृहीत होने के कारण स्मरण अवश्य रखना चाहिए । पहले वर्ग के भी दो उपवर्ग हैं-एक पूर्वी या किरात, दूसरा पच्छिमी चा कनौर-दामी उपवर्ग । नेपाल का सबसे पूर्वी भाग सप्तकौशिकी प्रदेश किराँत (किरात ) देश भी कहलाता है; वहाँ की बोलियाँ पूर्वी उपवर्ग की हैं। पश्चिमी उपवर्ग में कनौर की कनौरी (चा कनावरी) बोली, उसके पड़ोस की कुल्लू, चंबा और लाहुल की कनाशी, चंबा-लाहुली, मनचाटी आदि बोलियाँ एक ओर हैं, और कुमाऊँ के भोट प्रांत की दामिया आदि अनेक बोलियाँ दूसरी ओर हैं । इस प्रकार हिमालय के मध्य में यह वर्ग फैला हुआ है दूसरे वर्ग की अर्थात् असर्वनामाख्याती नेबारादि वर्ग की बोलियाँ नेपाल, सिकिम और भूटान में फैली हुई हैं । गोरखे वास्तव में सेगड़ी राजपूत हैं; मुस्लिम काल में भागकर हिमालय में जा बसे हैं । उनसे पहले के नेपाल के निवासी नेवार लोग हैं। स्यात् उन्हीं के नाम से नेपाल शब्द भी बना है। आजकल भी खेती-बारी, व्यापार-व्यवसाय व इन्हीं नकारों के हाथ में है; गोरखे केवल सैनिक और शासक हैं। इसी से नेपाल की असली बोली नेवारी है । नेवारी के अतिरिक्त नेपाल के पश्चिमी प्रदेशों की रोग (लपेचा), शुनवार, मगर आदि बोलियाँ भी इस वर्ग में आती हैं। इनमें से केवल नेवारी वाङ्मय-संपन्न भाषा है। बौद्ध धर्म के प्रचार के कारण इस पर आर्य-प्रभाव भी खूब पड़ा है यासामोत्तर शाखा का न तो अच्छा अध्ययन हुआ है और न उसका विशेष महत्त्व ही है । अत: तिव्वत-हिमालयी वर्ग के उपरांत आसाम-वर्मी वर्ग श्राता है। आसाम-वर्मा वर्ग श्रासाम-वी शास्त्रा की भापायों के सात उपवर्ग किए जाते हैं। इन न्सबमें प्रधान बर्मी और उसकी बोलियाँ (अराकानी, दावे आदि ) हैं। इस वर्ग की अन्य बोलियाँ भी प्रायः वर्मा में ही पड़ती हैं । केरल 'लालो' चीन में पड़ती है । सक और ऋचिन बोलियाँ तो सर्वथा वमा में हैं. कुकीचिन वर्मा और शेष भारत की सीमा पर बोली जाती है। !