पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भाषा-वज्ञान आता है और प्राय: सभी बातों में यह परिवार मुंडा से भिन्न पाया जाता है। मुंडा में कोई साहित्य नहीं है, पर द्राचिड़-परिवार द्राविड़ भाषाओं में से कम से कम चार में तो सुंदर और उन्नत साहित्य मिलता है। विद्यमान द्राविड़ भाषाएँ चार वर्गों में बाँटी जाती हैं. (१) द्राबिढ़ वर्ग, (२) आंध्र वर्ग, (३) मध्यवर्ती वर्ग और (४) बहिरंग वर्ग अर्थात् ब्रहुई वोली । तामिल, मलयालम, कन्नड और कन्नड की बोलियाँ, तुल और कोडगु (कुर्ग को बोली ) सब द्राविड़ वर्ग में हैं और तेलुगु या आंध्र भाषा अकेली एक वर्ग में है। इन सब बोलियों में अधिक प्रसिद्ध गोंडी बोली है। इस गोंडी का अपनी पड़ोसिन तेलुगु की अपेक्षा द्राविड़ वर्ग के भाषाओं से अधिक मध्यवर्ती वर्ग साम्य है। उसके बोलनवाले गोंड लोग आंध्र, उड़ीसा, वरार, चेदि-कोशल, (बुंदेलखंड और छत्तीसगढ़) और मालवा के सीमांत पर रहते हैं। पर उनका केंद्र चेदि-कोशल ही माना जाता है। गोंड एक इतिहास प्रसिद्ध जाति है, उसको बोली गोंडी का प्रभाव उत्तराखंड में भी हूँद निकाला गया है, पर गांडी बोली न तो कभी उन्नत भाषा बन सकी, न उसमें कोई साहित्य उत्पन्न हुआ और न उसकी कोई लिपि ही है । इसी से गोंडी शब्द कभी कभी भ्रमजनक भी होता है । बहुत से गोंड अब आर्य भाया अथवा उससे मिली गोंडी बोली बोलते हैं, पर साधारण लोग गांड मात्र की बोली को गोंडी मान लेते हैं । गोंड लोग अपने आपको 'कोई' कहते हैं। गाडी के पड़ोस में ही उड़ीसा में इसी वर्ग को 'कुई नाम को बाली पाई जाती है । इसका संबंध नलुग से विशेष देख पड़ता । इसमें क्रिया के रूप बड़े सरल होते हैं। इसके बागनेवाले मयले प्रविन जंगली हैं, उनमें अभी तक नहीं कहीं नर बलि की प्रथा पाः जाती है। उड़िया लोग उन्हें गोंधी, कांयी अथवा 1