पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१७२

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ध्वनि और ध्वनि-विकार १४७ वैदिक में (१) 86 के स्थान में ३ अ, e के स्थान में इ; (२) दीर्घ 8, 6 के स्थान में श्रा, (३) संध्यक्षर i, di के स्थान में : ए, परिवर्तन bu, bu के स्थान में ४ ओ; z, Lea के स्थान में भी , 0; (४) के स्थान में ईर, अर, ! स्थान में ऋ; (५) ai, ti, ai के स्थान में ai au, u, bu, ऐ के स्थान में an औ; आता है। इसके अतिरिक्त जब ऋ के पीछे अनु- नासिक आता है, ऋका ऋ हो जाता है। अनेक कंध्य-वर्ण तालव्य हो - गए हैं। भारोपीय काल का तालव्य-स्पर्श वैदिक में सोम श के रूप में देख पड़ता है। अर्जन-सात मूर्धन्य व्यंजन और एक मूर्धन्य प ये आठ बनि वैदिक में नई संपत्ति हैं। आजकल की भाषाशास्त्रीय दृष्टि से ५२ वैदिक ध्वनियों का वर्गी- करण इस प्रकार किया जा सकता है- स्वर- (तेरह स्वर) मध्य अथवा मिश्र अग्र , अ (ओ) ए संवृत (उच्च) अर्धसंवृत (उच्च मध्य) अर्ध-विवृत (नीच-मध्य) विवृत (नीच) आ, अ औ संयुक्त स्वर आक्षरिक ऋ,ल