पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२०१

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१७४ भापा-विज्ञान परिवर्तन केवल ट्यूटानिक भापा में ही हुआ था । उतका आदि-कालीन भारोपीय भाषा से कोई संबंध नहीं है और तीसरी बात यह है कि ग्रिम ने अपने नियम की उचित सीमाएँ भी नहीं निर्धारित की थीं। अत: उसके ध्वनि-नियम के अनेक अस्वाद हो सकते थे । इन्हीं अपवादों को समझाने के लिये ग्रासमान और व्हर्नर ने पीछे से उपनियम बनाए थे। इस प्रकार ग्रिम-नियम एक सदोप ध्वनि-नियम था। अत: अब जिस परिष्कृत रूप में उस नियम का भाषा-विज्ञान में ग्रहण होता है, हम उसका ही सक्षिप्त परिचय देंगे। प्रारंभ में उस नियम का यह सूत्र था कि (१) जहाँ संस्कृत, ग्रीक, लैटिन अादि में अघोष अल्पप्राण-स्पर्श रहता है, वहीं गाथिक, सदोष नियम अँगरेजी, डच आदि निम्न जर्मन भापाओं में महाप्राण ध्वनि और उच्च जर्मन में सबोप वर्ण होता है; इसी प्रकार (२) संस्कृत आदि का महाप्राण = गाथिक आदि का सबोप = उच्च जर्मन का अवोप वर्ण और (३) सं० का सचोप = ग० अघोष = उच्च जर्मन का महाप्राण होता है। (१) संस्कृति और ग्रीक (२) गाथिक (३) उच्च जर्मन प व व ब प भA क ग ह ग ख ग क त थ ध द . त त्स द द त अर्थात् (१) अघोप-महाप्राण = सघोष (२) महाप्राण = सघोष = अघोष (३) सघोप - अयोष = महाप्राण