पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२११

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१८४ भाषा-विज्ञान (१) संज्ञा प्रकरण (२) संधि प्रकरण (३) सुबन्त प्रकरण (४) अव्यय प्रकरण (५) स्त्रीप्रत्यय प्रकरण (६) कारक प्रकरण (७) समास प्रकरण (८) तद्धित प्रकरण (द्विरुक्त प्रक्रिया भी इसी में आती है) (९) तिङन्त प्रकरण (जिसमें दसों गण, सन्नन्त, एयन्त, यङन्त, मयङलुगन्त, नामधातु, आत्मनेपद प्रक्रिया, भाव-कर्म प्रक्रिया, करी कर्म प्रक्रिया, लकारार्थ प्रक्रिया आदि सभी का विचार किया जाता है) (१०) कृदन्त प्रकरण (११) वैदिक प्रकरण इनमें से पहले दो प्रकरणों में भूमिका है। इतना ध्वनि-विचार का ज्ञान हो जाने पर ही व्याकरण का अध्ययन होना संभव है। ध्वनि-विज्ञान का रूप-विचार से बड़ा घनिष्ठ संबंध है। सिद्धांत- कौमुदी का तीसरा प्रकरण "सुबन्त" प्रकरण है। इसमें संज्ञा, सर्व- नाम और विशेषण के रूपों का वर्णन हुआ है। चौथे प्रकरण में अव्यय आते हैं क्योंकि अव्यय भी एक प्रकार के सविभक्तिक शब्द ही हैं (देखो-पाणिनि-२।४।८२)। उनकी केवल एक विशेषता है कि उनके रूपों में परिवर्तन नहीं होता । अव्ययों के बाद स्वीप्रत्यय प्रकरण में लिंग का विचार किया गया है, पर वह विचार भी रूप की दृष्टि से ही हुआ है। अंत में विभक्तियों के अर्थ तथा प्रयोग का विचार आता है । यद्यपि यह वाक्य-विचार का प्रकरण है तथापि वहाँ भी ध्यान रूपों पर ही रहता है । तदुपरांत समास और तद्धित के प्रकरणों में यह विचार किया गया है कि शब्द की अंतरंग रचना कैसे होती है।