पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२१४

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रूप-विचार १८७ अध्ययन करना पड़ता है। इस प्रकार के अध्ययन को कहते हैं विशेप रूप-विचार । जव हमें व्याकरण की इन सभी बातों का सामान्य विचार करना पड़ता है अर्थात् सामान्य सिद्धांतों और तत्त्वों का अध्ययन और विवेचन करना पड़ता है तब उसे सामान्य रूप-विचार कहते हैं। इस प्रकार यह जान लेने पर कि रूप-विचार के प्रकरण में शब्दों और शब्द-रूपों की सिद्धि अर्थात् कृत्, तद्धित, समास, विभक्ति आदि का विवेचन, शब्द-भेदों की सामान्य समीक्षा रूप. कुछ परिभाषाएँ विकारों का विवेचन आदि व्याकरण की सभी बातों का विचार किया जाता है, हमें और आगे बढ़ने के पूर्व कुछ शब्दों के पारिभापिक अर्थों को समझ लेना चाहिए। आगे हम शब्द, शब्द- रूप, रूप-मात्र, अर्थ-मात्र आदि जिन पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग करेंगे उनकी परिभाषा जान लेना आवश्यक है। अभी तक हम "शब्द" का बड़े सामान्य, व्यापक तथा लौकिक अर्थ में व्यवहार करते रहे हैं। इस प्रकरण में भी साधारणतया हम वही अर्थ लेंगे। थोड़े विवेचन के उपरांत हम देखेंगे कि कभी कभी ध्वनि की दृष्टि से जिन्हें हम कई शब्द समझते हैं उन्हें रूप की दृष्टि से~वाक्य के अर्थ की चष्टि से... वैयाकरण एक शब्द मानता है ! शब्द-रूप में भी हम शब्द का वही सामान्य और व्यापक अर्थ लेते हैं । शब्द से संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया आदि सभी का बोध कराते हैं। यहाँ स्मरण रखना चाहिए कि जब कोई संस्कृत का विद्यार्थी धातु-रूप और शब्द-रूप की चर्चा करता है तब वह शब्द से क्रिया-शब्दों को छोड़कर अन्य शब्दों का ग्रहण करता है, पर हम शब्दरूप ( और शब्द के रूप) से क्रिया, संज्ञा श्रादि सभी के रूपों का ग्रहण करेंगे (१) जैसे "गच्छति स्म" में दो शब्द हैं पर वाक्यार्थ और रूप-विचार की दृष्टि से यह एक ही शब्द है । "स्म यहाँ स्वतन्त्र वाचक नहीं है, वह केवल गच्छति के अर्थ का द्योतक है। इसी प्रकार गांव में से तीन शब्द प्रतीत होते हैं पर वास्य-पक्ष से तीनों शब्दों को एक शब्द समझना पड़ता है।