पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२३७

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भाषा-विज्ञान मधु इत्यादि। आकारांत और ईकारांत शब्द संस्कृत, यूनानी और लैटिन तीनों भाषाओं में प्रायः स्त्रीलिंग होते हैं और उनके कर्ता एक- वचन में कोई विभक्ति नहीं लगती । जैसे सीता, रामा, नदी, स्त्री, पोशिया, डेस्डिमोना, जेसिका, नेरिसा (लैटिन ), हीरा (यूनानी) इत्यादि । इसमें संदेह नहीं कि इस नियम के अपवाद भी हैं । जैसे गोपा, विश्वपा (संस्कृत); एग्रिकोला, स्वित्वा (ले० ) आदि कुछ शब्द पुल्लिंग हैं । कभी कभी जब एक भाषा से दूसरी भाषा में शब्दों का आगमन होता है तब अनुकरण के द्वारा उनमें लिंग-विपर्यय हो जाता है। अर्थात् माहक भाषा में उसी अर्थ के द्योतक शब्द का जो लिंग होता है वही लिंग नए आए हुए शब्द का भी मान लिया जाता है । अनुकरण के द्वारा ही संस्कृत के अनेक शब्दों का लिंग पाली और प्राकृत में बदल गया है। इसी प्रकार संस्कृत से निकली हुई आधुनिक भारतीय भाषाओं में भी लिंगांतर पाया जाता है। जैसे संस्कृत के पवन और वायु शब्द हिंदी हवा के अनुकरण पर स्त्रीलिंग माने जाते हैं । अग्नि शब्द संस्कृत में पुल्लिग है। परंतु उससे व्युत्पन्न ागी शब्द हिंदी में इकारांत होने के कारण स्त्रीलिंग हो गया और यागी से आग होने पर भी लिंग वही बना रहा । आदिम भारोपीय भाषा में तीन वचन थे-एकवचन, द्विवचन और बहुवचन | पहले द्विवचन का प्रयोग केवल उन वस्तुओं में होता था जिनका नैसर्गिक युग्म है। जैसे आँख, कान, हाथ, पाँच इत्यादि । जिन वस्तुओं का कृत्रिम युग्म है उनके लिये भी द्विवचन का प्रयोग होता था । जैसे रथ के बाड़े, मुद्गर, जूते इत्यादि । परंतु कालांतर में किन्हीं दो वस्तुओं के लिये द्विवचन का प्रयोग होने लगा, और व्याकरण में एकवचन और बहुवचन के साथ साथ द्विवचन के द्वारा भी रूपांतर होने लगा। द्विवचन की निस्सारता धीरे धीरे लोगों पर प्रकट हुई और इसे अनावश्यक समझकर लोगों ने इसका सर्वथा त्याग कर दिया । यही कारण है कि पाली, प्राकृत, अपभ्रंश तथा आधुनिक वचन