पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२६

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विषय-प्रवेश ९ एक अन्वेषक ने पता लगाया कि अवेस्ता की भाषा में ग्रीष्म के लिये "हमा' शब्द आया है। इससे स्पष्ट हो गया कि ये हमा' और 'समा' शब्द एक ही हैं। इसी प्रकार पिता शब्द का भी हाल है। तुलनात्मक अध्ययन में भाषा के अंत्यावयव वाक्य माने जाते हैं। अतएव तुलना वाक्यों की होनी चाहिए, शब्दों की नहीं। यह तुलना प्रवृत्ति-निवृत्ति, विविनिषेध सूचक वाक्यों से होनी चाहिए। जहाँ ऐसे वाक्य न मिलें वहाँ सविभक्तिक शब्दों अर्थात् पदों द्वारा तुलना होनी चाहिए । प्राति- पदिक शब्दों द्वारा यह काम ठीक ठीक नहीं चल सकता । जब विभक्तियाँ और अर्थ दोनों एक हो तव शब्दों की समानता स्थिर की जा सकती है। अर्थ-साम्य और रूप-साम्य के निश्चित हो जाने पर ही कुछ परिणाम निकले सकता है। भापा-शास्त्रियों ने तुलना के लिये पहले तीन प्रकार के शब्दों को लिया था--संख्यावाचक, संबंधवाचक (पिता, माता आदि) और गृहस्थीवाचक । तुलना के लिये संख्यावाचक शब्दों की उपयोगिता सर्वप्रधान है, क्योंकि उनमें परिवर्तन बहुत कम होता है। पहाड़ों की गिनती में अभी तक प्राचीन शब्द प्रचलित हैं। संबंधवाचक और गृहस्थीवाचक शब्द भी स्थायी हैं। इनके भी अंग स्थिर होते हैं। इनका भी लोप प्रायः कम होता है। तुलना तभी ठीक होगी जब ऐतिहासिक प्रक्रिया से शब्दों का परिवार निश्चित हो जाय । संख्यावाचक शब्दों के अतिरिक्त उत्तम और मध्यम पुरुप के सर्वनामों में भी यूरोपीय भाषाओं में बहुत साम्य है। वर्णसाम्य पर शब्दों की व्युत्पत्ति हूँढ़ना या भिन्न भिन्न रूपों से भिन्न भिन्न मूलों अथवा एक मूल की कल्पना करना भ्रामक है। । प्रश्न है कि भाषा-विज्ञान की गणना कला में की जाय या विज्ञान में। कला के अंतर्गत केवल मनुष्य की कृतियाँ ही पाती हैं, जैसे चित्रकला, मूर्तिकला, काव्यकला आदि । भाषा-विज्ञान कला विज्ञान उसे कहते हैं जिसमें ईश्वर या प्रकृति है या विज्ञान की कृतियों की मीमांसा होती है, जैसे भौतिक- विज्ञान, वनस्पति-विज्ञान, जीवन-विज्ञान, मनोविज्ञान आदि । भाषा-