पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२६१

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२३२ भाषा-विज्ञान अर्थ-विचार कहलाता है। आगे के उदाहरणों से यह स्पष्ट हो जायगा। हम उदाहरण अधिक हिंदी के ही देंगे, पर कहीं कहीं तुलना के लिये संस्कृत, अँगरेजी, बँगला, मराठी आदि के शब्द भी देने का यत्न करेंगे। बौद्धिक नियमx जब एक अर्थ (भाव अथवा विचार) को प्रकट करने के लिये अधिक शब्द प्रयुक्त होते हैं और फिर कारण-वश शब्द कम हो जाते हैं तव इस विकार का कारण विशेष भाव' माना जाता है। १. विशेष भाव का नियम अनेक से खिचकर एक की ओर विशेष भाव रखने की इस प्रवृत्ति से शब्दों तथा शब्दार्थों का प्रायः ह्रास होता है। 3. यदि एक ही व्याकरणिक सबंध दिखाने के लिये अनेक प्रत्ययों का प्रयोग होता है तो धीरे धीरे कुछ दिनों में उन अनेक प्रत्ययों का काम दो अथवा एक प्रत्यय से ही चलने लगता है । विशेप भाव के कारण इस प्रकार अनेक प्रत्ययों का ह्रास अथवा लोप हुआ करता है। प्राचीन भाषाओं में तारतम्य का बोध प्रत्ययों से हुआ करता था । ये प्रत्यय आदि काल में बहुसंख्यक और बहुत प्रकार के थे। धीरे धीरे ये कम होते गए । संस्कृत में पहले तर, तम, ईयस, इष्ट दो प्रकार के प्रत्यय इस अर्थ में आते थे, पर पीछे से प्रयोग के नाते दूसरे प्रकार के प्रत्यय विजयी होते गए । जैसे-नारीयस्, लघीयस , द्राधीयस , महीयस वरीयस , श्रेयस , प्रेयस; और गरिष्ठ, लधिष्ठ, द्राधिष्ठ, महिष्ठ, वरिष्ठ, श्रेष्ठ, प्रेष्ठ इत्यादि । दूसरी ओर संख्यावाचकों में तम के संक्षिप्त रूप 'म' की विशेषता देख पड़ती है। पहले प्रथम, पंचम, सप्तम के समान रूप ही व्यवहार में आते हैं। ईय मवाले, रूप तो दो ही देख पड़ते हैं, यथा-द्वितीय और तृतीय । इसी प्रकार इष्ठ का 'थ' भी केवल चतुर्थ और श्रेष्ठ इन्हीं हो रूपों में बच गया। इस प्रकार तारतम्य का बोध कराने में एक प्रत्यय ने और संख्या का बोध कराने में दूसरे ने विशेषता प्राप्त कर ली है। इसे ही कहते हैं विशेप भाव का नियम । }