पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२८७

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२५६ भाषा-विज्ञान है। वास्तव में अवकाश का अर्थ होता है देश, पर अव देश से वह शब्द काल तक पहुँच गया 1 सच पूछा जाय तो रूपक उपचार के भीतर ही आ जाते हैं, तो भी उनमें कुछ विशेषता होने कारण उन्हें लोग अलग गिनते हैं। अन्य उपचार के कारण धीरे धीरे काम करते हैं पर रूपक उती क्षण इस तेजी से काम करता है कि हमारा ध्यान एक :म उस ओर खिंच जाता है। उदाहरण के लिये- पंजाब का सिंह अभी जीवित है । वह गदहा कहाँ गया ? उस साँपिन ने सभी डरते हैं । अाज कमल मुरझाया क्यों है ? जब एक शब्द दूसरे अर्थ में आने लगता है तब यह आवश्यक नहीं होता कि पहला अर्थ मिट ही जाच । इस प्रकार एक शब्द का कभी कभी बहुत से अर्थों में व्यवहार होने लगता । यह भी लक्षण और उपचार के अंतर्गत प्राता है पर अध्ययन की सुविधा के लिये उसके उदाहरण अलग विमानात है- (१) 'मल' शब्द दर्शन, गणित, ज्योतिप, अर्थशास्त्र, भाषा-विज्ञान श्रादि में भिन्न भिन्न अर्थ देता है। (२) धानु' भी व्याकरण, वैवाक, खनिजशास्त्र आदि में भिन्न भिन्न प्रों में प्राता है । यह लोग दंतधातु से युद्ध के स्मारक का अर्थ लेने हैं। (३) योग भी दर्शन. गणिन, व्यायाम श्रादि में भिन्न भिन्न अर्थ ८. अनेकात सनी मी संप की प्रवृत्ति शब्द को अनेकार्थक बना देती है जैन शंयन, ममा श्रादि । अमेरिकावाला कांग्रेन से अपनी व्यवन्या. पिका का, यूरोपियन निशानन वियना की कांग्रेस काली हिंदुस्तानी नानी गयीय सभा का प्रय लेना है। उनी प्रकार काशी में सभा कदन ने ना:चाहिनीमा का. पटिन लोग दक्षिणावानीसभा का नया नावानवाली नमा का अर्थ लेते है।