पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/३०

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विषय-प्रवेश १३ दो अंश होते हैं-एक अंश तो स्वाभाविक या प्राकृतिक है और इच्छा, राग, द्वेप, सामर्थ्य आदि उसके अंग हैं। दूसरा अंश वह है जो संस्कार- भाषा-विज्ञान और जन्य होता है । ज्ञान, विज्ञान, अनुभव और सामाजिक रीति-नीति के कारण मनुष्य में जो मानव-विज्ञान बातें आती हैं उन्हीं का अंगी यह अंश है 1 यदि आप किसी सभ्य से सभ्य जाति के शिशु को भी प्रारंभ से किसी एकांत स्थान में रखें तो भी, वयस्क होने पर, वह न तो अपनी मातृभाषा बोल सकेगा और न अपने वापदादा की भाँति किसी प्रकार की कला या विज्ञान आदि का ही परिचय प्राप्त कर सकेगा। उसमें शुद्ध मानव प्रकृति के ही लक्षण रहेंगे। संस्कार-जन्य बातों से वह सर्वदा कोरा होगा । अथवा यदि वह अपना संस्कार करना चाहेगा, तो उसे बहुत से अंशों में उसी मार्ग का अतिक्रमण करना पड़ेगा जो निरी प्रारंभिक अवस्था के मनुष्यों ने ग्रहण किया था । मानव-शास्त्र हमको यह बात बतलाता है कि आरंभिक काल में मानव समाज की क्या अवस्था थी और उनमें किन किन बातों का विकास कब कब और किस किस प्रकार हुआ । भापा-विज्ञान का धनिष्ठ संबंध मानव-विज्ञान के उस अंश से है जिसमें उसकी बात चीत, रहन-सहन और रीति-भाँति का विवेचन होता है। यदि आपको इस बात का ज्ञान न हो कि मानव- समाज में लेखन कला* का आरंभ और विकास कब और कैसे हुआ ? तो आपका भाषा-विज्ञान अधूरा ही रह जायगा। इसके अतिरिक्त और भी अनेक ऐसे विज्ञान हैं जिनका भाषा- विज्ञान से कुछ न कुछ संबंध अवश्य है । उदाहरण के लिये सामाजिक भाषा-विज्ञान और और राजनीतिक इतिहास, साधारण और प्राकृतिक भूगोल . प्रकृति-विज्ञान, समाज-शास्त्र आदि को ले लीजिए। इन सबका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भाषा-विज्ञान के साथ कुछ न कुछ संबंध अवश्य होता

  • प्रस्तुत संस्करण में इस विषय पर एक प्रकरण सम्मिलित कर दिया

गया है। देखिए सातवा प्रकरण। अन्य शास्त्र