पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/३०२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अर्थ-विचार अर्थों का बोध होता है । अपने अर्थ का त्याग होने से इनमें भी लक्षण- लक्षणा मानी जाती है। १) हाथ-पैर बचाकर काम करो ! (२) तुम्हारे सभी घोड़े तेज हैं पर वह काला वेजोड़ है । (३) लाल (२) उपादान-लक्षणा पगड़ी आई और वह घर में घुसा । ( ४ ) केवल दो बंदूकों के भय से इतने भाले-वरचे सब भाग खड़े हुए। (५) दही रखा है। कौए से बचाना। 'हाथ-पैर से शरीर का लक्ष्यार्थ निकलता है। शरीर में हाथ-पैर का भी उपादान हो जाता है। इसी प्रकार 'काला' का अर्थ काला घोड़ा है। यहाँ 'काला' का स्वार्थ छूटना नहीं है। आगे के वाक्य में लाल- पगड़ी' से सिपाही का बोध होता है। यहाँ भी पगड़ी का मुख्यार्थ साथ रहता है, छूटता नहीं है। इसी प्रकार 'बंदूक' और 'भाले बरछे, इन अस्त्रों को लिए हुए लोगों का बोध कराते हैं । इन अस्त्रों का उपादान स्पष्ट ही है। 'भय' बदूक और उसके चलानेवाले पुरुष दोनों से ही होता है। अंतिम वाक्य के कौए' से कुत्ता-बिल्ली, कीट-पतंगादि दही को दूपित करनेवाले सभी जंतुओं का अभिप्राय लिया जाता है। इस विचित्र लक्षणा में भी 'कौआ' शब्द का अर्थ छूटा नहीं है। कौओं का अर्थ और अधिक बढ़ गया है। (१) वह बालक सिंह है । (२) उसका मुखकमल खिल उठा । (३) वह स्त्री गाय नहीं, साँपिन है। (४) (३) गौणी सारापा लक्षणा मेरा लड़का हंस है। (५) सच्चा कवि भ्रमर होता है। इन सभी उदाहरणों में गुण-सादृश्य के कारण प्रारोप हुआ ! चालक सिंह के समान वीर है । मुख सौंदर्य में कमल के समान है। स्त्री गाय जैसी सीधी नहीं, साँपिन जैसी दुष्ट और कुटिल है । लड़का हंस के समान विवेकी है। कवि अपने रस-संग्रह करने के गुण में भ्रमर के समान है। इस प्रकार इन सब में लक्षणा का निमित्त गुण देख