पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/३०४

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. अर्थ-विचार २७३ (१) लो तुम्हें आयुं ही दे रहा हूँ। (२) बढ़ई भी आया था । (६) शुद्धा साध्य- (३) इस दुःख से कैसे छुटकारा मिले। (४) वसाना लहंगा रघुवंश पढ़ो। इन वाक्यों में प्रसंगानुसार आयु, बढ़ई, दुःख और रघुवंश से क्रमशः घृत, ब्राह्मण-विशेष, अविरत सुख और ग्रंथ-विशेष का अर्थ निकलता है। अर्थात् इन आरोष्यमाणों में आरोप-विपयों का अध्यत्र- सान देख पड़ता है। अत: इन सब में साध्यवसाना लक्षणा है। अध्य- क्सान का कारण सादृश्य नहीं है, इससे लक्षणा शुद्धा है। शब्द की तीसरी शक्ति व्यंजना है । नित्य के अनुभव में देखा जाता है कि किसी किसी शब्द से वाच्यार्थ अथवा लक्ष्यार्थ के अतिरिक्त एक तीसरा अर्थ निकलता है । सीधे शब्द से ( लक्षणा व्यंजना अथवा अभिवा द्वारा) एक ही बात का बोध होता है पर सुननेवाले को उसी से न जाने कितनी दूसरी बाते सूझ जाती शब्द को यह सुझानेवाली शक्ति अभिधा अथवा लदणा नहीं हो सकती। यह एक मानी हुई बात है कि शब्द की शक्ति एक प्रकार का अर्थ-बोय करा चुकने पर क्षीण हो जाती है। उसका एक व्यापार एक ही अर्थ का बोध करा सकता है । अभिधा अपना काम करके चुप हो जाती है। लक्षणा अपना अर्थ सिद्ध करके विरत हो जाती है। अत: दोनों शक्तियों के क्षीण हो जाने पर शब्द जिस शक्ति से किसी दूसरे अर्थ को सूचित करता है उसे व्यंजना कहते हैं। इस व्यंजना शक्ति द्वारा वोध्य अथे को व्यंन्यार्थ और ऐसे अर्थ से संपन्न शब्द को व्यंजक कहते हैं। शब्द की अन्य दो शक्तियाँ शब्द के द्वारा ही अपना काम करती हैं, पर व्यंजना शक्ति कभी कभी अर्थ के द्वारा भी अपना व्यापार करती है । इसी से व्यंजना शादी और प्रार्थी--दो प्रकार की मानी गई है } शाब्दी व्यंजना कभी अभिधामूला होती है, कभी लक्षणामूला; और आर्थी व्यंजना कभी वाच्यार्थसंभवा, कभी लक्ष्यार्थसंभवा और कभी व्यंग्यार्थसंभवा होती है। इस प्रकार शाब्दी व्यंजना दो प्रकार की और आर्थी तीन प्रकार की होती है। फा०१८