पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/३११

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२८० भाषा-विज्ञान शब्द का सहकारी कारण होना स्पष्ट है। यह भ्रम कभी न होना चाहिए कि आर्थी व्यंजना शब्द की शक्ति नहीं है । वास्तव में देखा जाय तो शब्द से बोधित होकर अर्थव्यापार करता है और शब्द भी अर्थ का सहारा लेकर ही (व्यंजना) व्यापार करता है दोनों का अन्योन्याश्रय संबंध है। निष्कप यह है कि शाब्दी व्यंजना में पहले शब्द में व्यंजन-व्यापार होता है फिर उसके अर्थ में भी वही किया होती है-इस प्रकार दोनों मिलकर काम करते हैं; पर शब्द की प्रधानता होने के कारण व्यंजना शादी कहलाती है। इसी प्रकार जब व्यंजना की क्रिया पहले अर्थ में होती है और पीछे से शब्द में, तो ऐसी क्रिया आर्थी व्यंजना मानी जाती है। यदि अर्थ के विचार से व्यंजना के भेद किए जायें तो अनेक हो सकते हैं। कई लोग वस्तु-व्यंजना, अलंकार-व्यंजना और भाव- व्यंजना-ये तीन भेद मानते हैं, पर अर्थ की दृष्टि से ध्वनि के इक्यावन भेद-प्रभेद भी व्यंजना के अंतर्गत आ जायेंगे । काव्य के उत्तम, मध्यम आदि होने का विचार भी व्यंजना के भीतर आ सकता है। साहित्य अर्थात् कवि-निवद्ध वाङमय में चारों ओर व्यंजना की ही लीला तो दृष्टिगोचर होती है। अत: व्यजना-व्यापार के भेदों का विवेचन करना हो यहाँ समीचीन समझा गया है। मम्मट, विश्वनाथ आदि प्राचार्यों ने भी व्यंजना के प्रकरण में ध्वनि और रस का प्रतिपाइन नहीं किया है। व्यंजना उनके मूल में अवश्य रहती है। ये व्यंजना के ही फल तो हैं । अव हम शदी की बहिरंग परीक्षा के संबंध में संक्षेप में कुछ लिखेंगे। भिन्न भिन्न वस्तुओं तथा व्यक्तियों के भिन्न भिन्न नाम देखकर यह जानने की उत्कंठा होती है कि अमुक वस्तु चीजों के नाम कैसे का यह नाम क्यों पड़ा ? एक प्रांत, देश अथवा पड़ते हैं? धर्म के लोगों का नाम दूसरे प्रांत, देश अथवा धर्म के लोगो से भिन्न क्यों हैं ? इस विषय का विवेचन करने के पूर्व यह जान लेना आवश्यक है कि भापा किसी वस्तु के नाम द्वारा उसका पूर्ण और ठीक ठीक ज्ञान नहीं करा सकती। नाम के लिये प्राय: ऐसे