पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/३१२

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अर्थ-विचार २८२ शब्द चुने जाते हैं जो किसी वस्तु के संकेतमात्र हों और बहुत लवे न हों, नहीं तो प्रयोग में कठिनाई होती है, जैसे सूर्य (मूल अर्थ= आकाश में भ्रमण करने गला), पृथिवी (जो बहुत विस्तृत हो), सर्प (टेडा चलने- वाला), पर्वत (पोरोवाला) इत्यादि। प्रायः वस्तुओं के नाम किसी विशेष गुण के कारण पड़ते हैं। परंतु जब एक वस्तु का कोई नाम पड़ जाता है तब वह उस वस्तु का संकेत हो जाता है। पीछे से चाहे पता लग जाय कि वह नाम उस वस्तु के गुणों के उपयुक्त नहीं है, फिर भी उसका नाम परिवर्तित नहीं होता। मोटर यद्यपि हवा से नहीं चलती, फिर भी हवा के वेग से चलने के कारण एक बार उसका नाम हवागाड़ी पड़ गया तो वह नाम परिवर्तित नहीं हुआ। अंग्रेजी का मोटर शब्द व्यवहार में आ गया है पर शहर से दूर दूरवाले गाँगों में उसे अभी बागाड़ी ही कहते हैं। इसी प्रकार म्यूजियम (Muscum) के लिये जादूघर का प्रयोग होता है। कभी कभी वस्तुओं का नाम बड़े विचित्र ढंग से पड़ता है । जैसे ग्रंथ (मूल अर्थ = गाँठ दिया हुआ), वंशी (वाँस से बनी हुई चीज) कभी कभी एक भाषा के नाम जब दूसरी भाषा में जाते हैं तत्र उनकी पुनरावृत्ति (Repetition) हो जाती है; जैसे पाव रोटी (पाव-रोटी, पुर्तगाली), मलयगिरि (मलय = पर्वत, द्रविड़)। इसी प्रशार अंग्रेज लोग Nilgiri (नीलगिरि) के साथ hills के प्रयोग करते हैं। कभी कभी लोग विध्याचल पहाड़ भी कहते हैं। इसका कारण यह है कि विदेशी भाषा के शब्दों को व्युत्पत्ति न मालूम होने के कारण संपूर्ण शब्द एक व्यक्तिवाचक नाम मान लिया जाता है और फिर अपनी भाषा का नाम उसमें जोड़ दिया जाता है। व्यक्तियों के नामों में बड़ी विचित्रता पाई जाती है। वस्तुओं के नाम में तो थोड़े बहुत लक्षण या गुण पाए जाते हैं, पर व्यक्तियों के नाम में इसका विलकुल विचार नहीं किया जाता। अत्यंत निर्धन व्यक्ति का नाम धनपति या कुबेर तथा अंचे व्यक्ति का नाम पद्मलोचन या पुंडरीकाक्ष हो सकता है। इसी प्रकार धनवान व्यक्तियों के तीन कौड़ी,