पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/३३०

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प्रागैतिहासिक खोज निष्पक्ष भाव से इस प्रश्न पर बहुत कम विद्वानों ने विचार किया है। ऊपर डा० लैथन का उल्लेख हो चुका है। उन्होंने स्कैंडिनेविया को आदिम-आर्य-निवास माना है। इसका कारण स्पष्ट है । डाक्टर साहब स्कैंडिनेवियन भाषाओं के विद्वान् और अध्यापक हैं। इसी से उन्हें स्कैंडिनेविया के अतिरिक्त और कोई स्थान ही न मिला जो आर्यों का मूल निवास माना जाता । एक भारतीय विद्वान् ने उक्त डाक्टर साहब से इस विषय में प्रश्न भी किए थे और हर्प की बात है कि डाक्टर महो- दय ने इस बात को स्वीकार कर लिया था कि पार्यों का आदिम स्थान निर्दिष्ट करने में वे पक्षपात से मुक्त न थे। इसी प्रकार प्रोफेसर श्रेडर भी स्लाहिक भाषाओं के अध्यापक हैं और यही कारण है कि वाल्गा नदी के आस-पास ही उन्हें मूल आर्यनिवास के चिह्न मिले । इस विषय में एक बात और भी ध्यान में रखने योग्य है कि आर्यों का मूल निवासस्थान निर्दिष्ट करने में वृक्षों और प्राणियों के नामों तथा सांसारिक उन्नति के पदार्थों की ओर अधिक ध्यान दिया गया है । भिन्न-भिन्न भाषाओं के व्याकरणों में परस्पर कितना संबंध है, इस पर आवश्यकता से कम ध्यान दिया गया है; और वास्तव में इस विषय में भाषाओं के परस्पर संबंध का महत्त्व बहुत अधिक है। विद्वानों को चाहिए कि भारोपीय-वर्ग की भिन्न-भिन्न भाषाओं की परस्पर तुलना करके इस बात का पता लगा कि कौन-कौन सी भाषाएँ कब तक एक दूसरी से संबद्ध रही हैं, किस भाषा का किसी विशेष भापा से अथवा अपनी समकक्ष अन्य भाषाओं से कब विच्छेद हुआ। इस प्रकार का तुलनात्मक अध्ययन सचमुच ही आर्यों का आदिम स्थान निर्दिष्ट करने में सहायक होगा। इस संबंध में तीसरी वात जिस पर कम ध्यान दिया गया है यह है कि जिस समय आर्यों का परस्पर विच्छेद नहीं हुआ था और वे एक ही स्थान में रहते थे, उस समय-संसार की भौगोलिक स्थिति वही नहीं थी जो आज है । आज से कम से कम दस सहस्र वर्ष पूर्व एशिया और यूरोप के महाद्वीपों की भौगोलिक स्थिति में आज की अपेक्षा यदि