पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/३३३

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३०४ भाषा-विज्ञान कि उनका पहला निवासस्थान खीवा का शाद्वल था। वहाँ से उन नदियों के किनारे किनारे उद्गमों की ओर बढ़ते बढ़ते वे खोकंद और चदख्शाँ की ऊँची भूमि में आ बसे । यहाँ अार्यो की दूमरी शाखा तक वे मिले-जुले रहे, उनमें कोई भेदभाव नहीं हुआ। पर यहाँ से उनके भी दो दल हो गए-एक फारस को ओर चला गया और दूसरा काबुल नदी की उपत्यका में से होता हुआ भारतवर्ष में आ वसा । जो लोग फारस को और गए उनकी भाषा क्रम क्रम से परिवर्तन होता गया और अंत में वह ईरानी भाषा के नाम से प्रख्यात हुई । जो दल भारतवर्ष में आया, उसकी भापा का नाम संस्कृत हुश्रा। पार्यो की इस शाखा, उनको भापा संस्कृत और उससे उत्पन्न अन्यान्य भारतीय भाषाओं के संबंध में पिछले प्रकरणों में कहा गया है; अत: यहाँ हम उनके संबंध में थोड़ी सी मुख्य बातों ही का उद्वरण करके इस विपय को समाप्त करते हैं। अब पहला प्रश्न जो हमारे सम्मुख उपस्थित होता है, यह है कि आर्यों का अपने मूल निवासस्थान में क्यों विच्छेद हुआ और उनके दल पूर्व और पश्चिम की ओर क्यों गए 1 कुछ आयों का विच्छेद विद्वानों का अनुमान है कि उत्तर की ओर से मंगोल जाति के लोगों ने उन्हें खदेड़ना और सताना आरभ कर दिया था। इससे घबरा कर उनके दल पूर्व और पश्चिम की ओर निकल गए थे । साथ ही यह भी संभव है कि उनके आदिम निवासस्थान के जलवायु में परिवर्तन हो गया हो और वहाँ वा कम होने लग गई हो जिसस अपने पशुओं के साथ उनका वहाँ रहना कठिन हो गया हो । यह भी संभव है कि उनकी संख्या इतनी बढ़ गई हो कि सबका वहाँ बपना कठिन हो गया हो; अथवा आपस में लड़ाई झगड़े के कारण ही बिच्छेद हो गरा हो । उस समय का कोई इतिहान न मिलने के कारण कंवल अनुमान से ही काम लेना पड़ता है। अतएव जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, गतिहानिक और भौगोनिक हेतुओं से अथश गृहकलह के कारण आर्य लोग नवीन स्थानों की खोज में निकले थे।