पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/३३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

वास भाषा-विज्ञान श्रावश्यक वस्तुओं, जैसे वीज, हल और पेड़ो तथा अनाजों आदि के नाम दोनों शाखाओं में प्रायः अलग अलग हैं जिससे यह अनुमान होता है कि खेती करना उन्हाने पीछे से और अलग अलग सीखा। शिकार करना वे जानते थे। जंगली जानवरों जैसे वृक, ऋक्ष, उद्र आदि के लिये भी प्रायः समान शब्द मिलते हैं। जन, विश्, पू:, दम, द्वार, स्थूल आदि शब्द यह बात सिद्ध करते हैं कि ये लोग छोटे छोटे गाँवों में रहते थे, मकान बनाते थे, उनमें दर्वाजे लगाते थे और उनको छाते थे। मधु और उनके समवाची मृदु, मेथू, मेटू. मीड शब्द यह सिद्ध करते हैं कि प्राचीन समय में यह पेय पदार्थ था । यह कोई मीठा पदार्थ पेय पदार्थ रहा होगा। सोम के लिये अवेस्ता की भाषा में हाप्रोम शब्द मिलता है, परंतु अभी इसके संबंध में यह निश्चय नहीं हो सका है कि यह पौधा कौन था । व्यापार का स्वरूप पदार्थों का विनिमय था। जहाँ यह नहीं हो सकता था, वहाँ मूल्य में गौएँ दी जाती थीं। व्यापार प्राय: बाहर व्यवसाय और व्यापार के लोग करते थे जिनसे घृणा की जाती थी। पदार्थों के तौलने नापने आदि का भी विधान था। लोहा, ताँवा आदि धातुएँ भी ज्ञात थीं। कपड़ा बुनना, सीना और तीर बनाना भी उन्हें अाता था। मिट्टी, लोहे आदि के बर्तन बनाना भी वे जानते थे। तक्षण शब्द बड़ा पुराना है, जिससे कह सकते हैं कि बढ़ई का व्यवसाय भी उस समय होता था। गिनती गिनना भी वे जानते थे। वर्प तथा ऋतुनों में हेमंत, समा (गर्मी), शरद आदि का पार्यो समय का विभाग को ज्ञान था। महीनों तथा दिन-रात (दाय, नक्त) के विभागों से भी वे परिचित थे । भिन्न भिन्न संबंधों को सूचित करने के लिये प्रायों की दोनों शाग्यायों में एक से शब्द हैं, जिससे यह प्रकट होता है कि अति प्राचीन