पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/३५३

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भाषा-विज्ञान और म्ह . (३०) ल्ह-यह ल का महाप्राण रूप है। न्ह की भाँति यह भी मूल व्यंजन ही माना जाता है। इसका प्रयोग केरल बोलियों में मिलता है। उदा०-०-काल्हि, कल्ह (बुन्देलखंडी), सल्हा (हि. सलाद)। कलही, जैसे खड़ी बोली के शब्दों में भी यह ध्वनि सुन पढ़ती है। (३१) र---लुंठित, अल्पप्राण, वय॑, घोप-ध्वनि है। इसके उच्चा- रण में जीभ की नोक लपेट खाकर वर्क्स अर्थात् लुटिन ऊर के मसूड़ों को कई बार जल्दी जल्दी छूती है उदा-रटना, करना, पार, रिण । (३२) रह-र का महाप्राण रूप है। इसे भी मूल ध्वनि माना जाना है । पर यह कंबल बोलियों में पाई जाती है। जैसे- कहानी, लहानो श्रादि (ब्राज)। (२३) इ-अल्पप्राण, घोप, मूर्धन्य उत्क्षिप्त ध्वनि है। हिली की नवीन ध्वनियों में ने यह एक है। इसके उच्चारण में उलटी जीभ की नोक ने कठोर तानु का स्पर्श मटके उक्षित के साथ किया जाता है 1 शब्दों के आदि में नहीं पाना; केवल मध्य प्रथया अंत में दो स्वगं के बीच में ही 1 मार, का, बना, बहार। हिंदी में हम ध्वनि का मारल्या (३१) --माण, घोप, गृधन्य, उरिचम ध्वनि है। यह द का मामा , ट स्प। श्रीर र विराम धनि है। पाम गली मार, टका व्यकार शब्दों के प्रादि में ही होना "तौर का प्रयोग की मग र. बीच में ही होना है।