पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/६२

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भाषाओं का वर्गीकरण ५१ इनका स्वतंत्र अस्तित्व स्पष्ट रहता है। ये अपनी प्रकृति में सर्वथा लीन नहीं होते। इनका संयोग, संचय अथवा उपचय इतना नियमित और व्यावहारिक होता है कि रचना विलकुल पारदर्शी प्रत्यय-प्रधान होती है। उसका व्याकरण सर्वथा सरल और सीधा होता है। तुर्की ऐसी अपवाद-रहित और ऋजुमार्गगामिनी भाषा का व्याकरण एक शीट कागज पर लिखा जा सकता है। यदि हम इस भाषा का एक शब्द 'सेव', जिसका अर्थ प्रेम करना होता है, ले लें तो उसमें प्रत्यय जोड़कर अनेक शब्द वताए जा सकते हैं। सेवमेक (प्यार करने के लिये ), सेव-मे-मेक (प्यार नहीं करने के लिये ), सेवइश मेक (एक दूसरे को परस्पर प्यार करने के लिये ) इत्यादि। ऐसी साधारण रचना के अतिरिक्त सेव-इश- दिर-इल-मे-मेक (परस्पर प्यार नहीं किए जाने लिये) के समान वहु-संहित रूप भी सहज ही निष्पन्न हो जाते हैं। प्रत्यय-प्रधान भाषा में विभिक्ति-प्रधान भाषा की तरह न तो प्रकृति और प्रत्यय का भेद सर्वथा लुप्त हो जाता है, और न प्रत्यय में ही कोई विकार होता है। यदि संयोग से किसी प्रत्यय में कोई विकार भी होता है तो वह भी स्वरों की अनुरूपता ( Vowel Harmony ) के नियम से होता है । अर्थात् प्रत्यय का स्वर प्रकृति के अंतिम स्वर के अनुरूप होना चाहिए । जैसे अत्' (घोड़ा) और 'एव' (घर) में एक ही वहुवचन का प्रत्यय दो भिन्न रूपों में दिखाई पड़ता है जैसे- "अत्लर' (घोड़े) और एवलेर ( अनेक घर )। प्रत्यय-प्रधान भाषाओं के चार उपविभाग किए जाते हैं पुर:- प्रत्यय-प्रधान, पर-प्रत्यय-प्रधान, सर्व प्रत्यय-प्रधान और ईपत्-प्रत्यय- प्रधान । अफ्रीका की वांतू परिवार की भाषाएँ पुर-प्रत्यय-प्रधान होती हैं, अर्थात् प्रकृति के पूर्व प्रत्यय लगता है। यूराल-आल्टिक और द्राविड़ परिवार की भाषाएँ पर-प्रत्यय-प्रधान होती हैं । यूराल- आल्टिक परिवार की तुर्की भाषा के उदाहरण पीछे आ चुके हैं। यहाँ पर द्राविड़ का उदाहरण दे देना उचित होगा और संस्कृत के साथ