पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/६९

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भाषा-विज्ञान व्याकरणों का ऐतिहासिक अध्ययन आवश्यक है; क्योंकि व्याकरण नियम भी शाश्वत नहीं हैं, उनमें समयानुसार परिवर्तन हुआ करता है। जो भाषा एक समय संयोगावस्था में है उसी का विकसित रूप वियोगावस्था को प्राप्त हो जाता है । संस्कृत से लैटिन ग्रीक आदि भाषाओं की तुलना हो सकती है, पर उसी के विकसित रूप हिंदी से उक्त भाषाओं की तुलना कठिन है । अतएव, इस विषय में इतिहास की सहायता अनिवार्य है। उपर्युक्त सिद्धांतों ध्यान में रखते हुए विद्वानों ने संसार भर की भाषाओं का अध्ययन करके उनके परस्पर संबंध का पता लगाया है; और उनको बंश के अनुसार परिवारों में विभाजित किया है। उनमें भारोपीय, सेमेटिक, हेमेटिक, यूराल-अल्ताई, द्राविड़, एकाक्षर (चीनी परिवार ), काकेशस, वांतू अादि प्रसिद्ध भाषा-परिवार हैं। इस प्रकार भाषाओं का पारिवारिक वर्गीकरण करने में सरलता, स्पष्टता और सुविधा की दृष्टि से भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रखना अच्छा होता है । इस ष्टि से विश्व के चार खंड अमेरिका खंद होते हैं-(१) दोनों अमेरिका,(२)प्रशान्त महासागर, (३) अफ्रीका और (४) यूरेशिया। दोनों अमेरिका भाषा की बष्टि से जगन् से सर्वथा भिन्न माने जा सकते हैं। इस परिवार की भापायों की साधारण विशेषता यह है कि इनकी रचना समास-प्रधान होती है। उनकी प्रायः सभी अवस्थाएँ पाई जाती हैं। इस खंड की प्रधान भापायों का स्थूल वर्गीकरण इस प्रकार किया जाता है-उत्तरी अमेरिका के पांच देशों ग्रीनलैंड, कनेडा, मंयुक्तराज्य, मेक्सिको और यूकतन-में क्रमशः पस्किमो, अथवास्कन, अल्गोंकिन, इरोस्वाइम, आधुनिक नया नहुानल्स और मय भाषाएँ हैं। मध्य अमेरिका में कार वर्गीकरण नहीं है । दक्षिणी अमेरिका के उत्तरी भाग में कारिव और अग्नाक, मध्यदेश में गुधार्नी-पी, पश्चिमी भाग में किचुया और अगेकन और दक्षिणी भाग में चाको और नीराढेल फागो भाया है। इन भाषाओं में तांगडेल और कृयागी जग्गी