पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१०

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राष्ट्रभाषा की परंपरा श्रुतियों को अलग रखिए । · वाल्मीकीय रामायण के अव- लोकन से अवगत होता है कि उस समय संस्कृत संमस्त देश की राष्ट्रभाषा थी। दक्षिण के द्रविड़ देशों में भी उसका प्रचार था। वानरवर हनूमान, सीता की खोज में, समुद्र पार कर लंका पहुँच गए हैं। राक्षसियों से घिरी संतप्त सीता की सांत्वना के लिये सोच में पड़ गए हैं :- निशाचरीणां प्रत्यक्षमक्षम चाभिभाषितुम् । : कथं नु खलु कर्तव्यमिदं कृच्छ्रगतो ह्यहम् ।। अहं पतितनुश्चैव वानरश्च विशेषतः । वाचं चोदाहरिष्यामि मानुषीमिह संस्कृताम् ।। यदि वाचं प्रदास्यामि द्विजातिरिव संस्कृताम् । रावणं मन्यमाना मां सीता भीता भविष्यति ॥ (सुदरकांड ११ सर्ग, १७-१८८ श्लोक ) साषा के विचार से प्रस्तुत अवतरण बड़े महत्त्व का है। संस्कृत के प्रसंग में इसका प्रायः उल्लेख किया जाता है। इसमें मनुष्य, वानर तथा राक्षस की एक सामान्य भाषा का विधान है। सीता, हनूमान और रावण सभी जिस भाषा का परस्पर १-वाल्मीकीय रामायण के समय के विषय में विद्वानों में मतभेद प्रथम तथा सप्तम कांड प्रक्षिप्त माने जाते हैं। शेष की प्राची- नता में किसी को संदेह नहीं । यहाँ पर जा अवतरण प्रस्तुत किए गए हैं वे मूल पाठ से हैं जो कम से कम ईसा से ५ या ६ सौ वर्ष पहले के हैं।